एक सुन्दरी मेरे जीवन मे (भाग-4)
पिंजरे मे जंग न लगे इसलिये इसे प्लास्टिक कोटेड बनाया गया। जब सुन्दरी को इसमे रखा गया तो पहले तो कोई दिक्कत नही हुयी पर बाद मे पिंजरे को ध्यान से देखने के पर पाया कि यह कोटिंग जगह-जगह से उखडी हुयी है। माथा ठनका। रात को उठकर देखा तो पता चला कि सुन्दरी ही उसे कुतर रही है। हमे डर यह था कि कही यह प्लास्टिक अन्दर तो नही जा रहा है। पिताजी ने तुरंत पिंजरा बदलने की बात की। वे बहुत ज्यादा सशंकित थे। सुन्दरी के व्यव्हार और खान-पान मे कुछ फर्क नही दिख रहा था। कुतरा हुआ प्लास्टिक छोटे-छोटे टुकडो के रुप मे नीचे पडा दिखता था। हम लगातार नजर जमाये रहे। कुछ दिनो मे यह स्पष्ट हो गया कि चोच की कसमसाहट को दूर करने या उसे पैना करने के लिये सुन्दरी यह सब करती रही। जबलपुर मे मामा जी के घर करन तोता है। वो दिनभर घर मे खुला घूमता है। जब उसे छोडा जाता है तो सारे जूते-चप्पलो को छुपा दिया जाता है। नही तो कुछ भी कतरे जाने से नही बचता। उन्होने जब इस बारे मे बताया तो सुन्दरी की इस आदत को हमने और अच्छे से जान लिया।
सुन्दरी को मच्छरो से बचाने के लिये गाँव के दर्जी से एक छोटी सी मच्छरदानी सिलवायी गयी। रात को इसे लगाकर खिडकी की ओर कपडा ढक दिया जाता है ताकि उसकी जानी दुश्मन बिल्ली रानी खिडकी पर आकर बैठे भी तो सुन्दरी को डरावने सपने न आये। कुछ ही दिन बीते कि सुन्दरी ने मच्छरदानी और कपडे मे भी बडे-बडे छेद कर दिये। अब जब भी उसे नीन्द नही आती है, इन छेदो से झाँकती रहती है और बिल्ली रानी को चिढाती रहती है। सर्दियो मे कम्बल का भी उसने यही हश्र किया। सब उसे प्यार करते है पर इस हरकत पर नाराज भी हो जाते है। दो बार के प्रयास के बाद अब वही फटी मच्छरदानी उपयोग हो रही है।
आल आउट मे उपस्थित एलीथ्रीन मच्छरो और आदमियो को किस मात्रा मे नुकसान पहुँचाता है यह तो वैज्ञानिक दस्तावेज बतलाते है पर सुन्दरी की प्रजाति के तोतो के पास कितनी देर तक इसे जलाना चाहिये यह जानकारी कही नही मिलती। कम देर तक जलाओ तो मच्छर नही भागते और ज्यादा देर होने पर चिंता होती रहती है। शुरु-शुरु मे सुन्दरी को मच्छर खाते देखा तो लगा कि अब ये शैतान उसके लिये समस्या नही बनेगे पर लगता है कि उसे मच्छर स्वादिष्ट नही लगे। इस प्रजाति के तोते कीडे-मकोडे तो खाते ही है। सुन्दरी का पूरा शरीर ढका होने के कारण मच्छरो से बचा रहता है। पर पंजे खुले होते है। उसी पर मच्छरो की नजर रहती है। रात को सोते समय दूर ही से चट-चट की आवाज सुनायी देती है। एकांतर क्रम मे वो अपने पंजो को हिलाती रहती है चाहे मच्छर हो या न हो। यह प्रक्रिया नीन्द मे भी जारी रहती है। बडी दया आती है। पर करे भी तो क्या? अपनी जडी-बूटी जलाने से वह शोर मचाती है। शायद धुँआ ज्यादा कडवा लगता है उसे।
इस बार मच्छर कुछ ज्यादा ही है। जब भी कोई मच्छर सुन्दरी की ओर आता है तो वो जोर से घुडकने जैसी आवाज निकालती है। शायद यह प्रभावी है क्योकि हमने इससे अक्सर मच्छरो को दूर जाते देखा है।
4 comments:
सुन्दरी की कथा रोचक है. मच्छरदानी बड़ी बनावा कर उसके अंदर पिंजरे को रखिये तो शायद सुन्दरी की पहुँच क बाहर रहने से मच्छरदानी भी बच जाये और मच्छर भी न परेशान करें.
सही है। सुन्दरी कथा अच्छी है। मच्छर दानी के अलावा वो आयोडेक्स भी लगाये।
अजी मैं तो कहता हूँ सुंदरी को सुंदर बन में छोड़ आइये, क्या पिंजरा, मछरदानी और आयोडेक्स का चक्कर ....
अरे हमारा गोलू पाण्डेय (दिवंगत) जब पिल्ला था तो अपने दांत पैने करने के लिये जूते चप्पल नीछ देता था। बचा कर रखने पड़ते थे। यह पोस्ट पढ़ कर उसकी याद आ गयी।
Post a Comment