Tuesday, April 1, 2008

मेरे घर आये मिट्ठू मियां

ये वाकया आज से लगभग ५ साल पहले का है.मई के महीने की अलस भरी सुबह थी.बिटिया को स्कूल बस पर चढा के आई, आकर एक प्याला चाय का बनाया और अखबार लेकर बिस्तर पर ही फ़ैल कर बैठ गई.मेरी लाडली वैली (१.५ वर्षीय लैब्राडोर) भी वहीं पडी सुस्ता रही थी.ना जाने कब मेरी आंख लग गई और मुझे अचानक से सपने में शिर्डी के सांई बाबा दिखे. तन्द्रावस्था में ही याद आया कि आज तो गुरुवार है,बाबा की सेवा करनी है.इतने में ही बाबा तो अन्तर्धान हो गये और एक हरियल तोता उडता हुआ मेरे सामने आकर बैठ गया.इसके बाद मेरी नींद टूट गई.उठते ही निश्चय किया कि मेरे पास जो खाली पिन्जरा रखा है, उसके लिये १-२ दिनों में ही एक मिट्ठू ले आऊंगी.इस के उपरांत मै घर के दैनंदिन कार्यों में व्यस्त हो गई.दोपहर के १२-१ बजे वैली ने भौंकना शुरु किया, और मेरी काम वाली चिल्लाई, "दीदी ये देखो बालकनी में तोता आया है." मै सुबह का देखा हुआ स्वप्न लगभग भूल ही गई थी, अत: बोली,"अरे उसे उडा दो ".थोडी देर में वैली का भौंकना बढ गया ,काम वाली की आवाज में और तीखापन आ गया तो मै भी बालकनी की ओर चली.देखा तो तोता महाशय साथ लगे हुए कमरे में प्रवेश कर चुके हैं और स्टील की अलमारी पर विराजे हुए हैं.मेरे भगाने की कोशिश को दरकिनार करते हुए मिट्ठू साहब ड्राइन्ग रूम की ओर उड चले और वहां लटकी एक तस्वीर पर खुद भी चिपक गये.अब कैसे ,क्या हो ?
बडी ही विषम परिस्थिति बन गई थी.वैली की उग्रता चरम पर थी, वो लगातार भौंक कर और यहां से वहां कूद कूद कर आफ़त कर रही थी.तोते महाशय को कोई घबराहट नहीं थी.अचानक बोले,"मिट्ठू को खाना दो,सुनो,सुनो." मै अचरज में पड गई, न जाने किस के घर से छूट कर आया है, इसके घर-वाले कितने परेशान हो रहे होंगे? लेकिन अतिथी महोदय का सत्कार तो ज़रूरी था ना? इसलिये पहले वैली को बांधा,फ़िर रसोई से गुड निकाल कर लाई. जैसे ही मैने अपनी हथेली आगे की, श्रीमानजी बिना किसी तकल्लुफ़ के गुड कुतरने लगे.फ़िर बिस्किट की बारी आयी.ऊपर से पिन्जरा निकाल कर मिट्ठूजी का ग्रह प्रवेश करवाया. वो बडी शान से पिन्जरे में दाखिल हो कर चहल-कदमी करने लगे.अपनी सोसाइटी में रहने वाले घरों में पुछवाया किन्तु मिट्ठूजी के मालिक का कोई पता नहीं चल पाया. जिस दौरान मिट्ठूजी हमारे यहां आतिथ्य ग्रहण कर रहे थे,मुझे यकायक सुबह का सपना याद आ गया.शिर्डी के सांई बाबा का आशीर्वाद समझ कर मिट्ठूजी को हमारे घर के सदस्य के रूप में मान्यता मिल गई. अगली पोस्ट में मिट्ठूजी की खास अदाओं से आपका परिचय करवाऊंगी.

2 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

http://nukkadh.blogspot.com/
http://jhhakajhhaktimes.blogspot.com/
http://bageechee.blogspot.com/
http://avinashvachaspati.blogspot.com/

आपके लिए उपयोगी लिंक्‍स, महत्‍वपूर्ण सूचनाएं.

mamta said...

इला जी आपके मिट्ठू से मिलकर खुशी हुई। कई बार जीवन मे ऐसा ही होता है।