

खैर जंगली घाट मे एक दूकान थी वहां से हम लोग करीब ६ जोड़े अलग-अलग तरह के लेकर आए थे और उन्हें इस pond मे डाल दिया था।मछली खरीदते समय इस बात का ध्यान रक्खा था की शार्क मछली को ना खरीदे क्यूंकि
वैसे ये समझ जाता है की मछली पालना बहुत ही आसान होता है पर ऐसा भी नही है । इन सुन्दर और प्यारी मछलियों को भी देख-भाल की खूब जरुरत होती है। पानी साफ होना और दाने ज्यादा ना खा जाएं इस बात का ध्यान रखना होता था। क्यूंकि अगर ये दाने ज्यादा खा जाती है तो भी मर जाती है। दिल्ली मे जब हम लोग फिश पोंड मे मछलियाँ पालते थे तो अक्सर ऐसा ही होता था।
हालांकि ये थी सिर्फ़ बारह ही और एक बहुत ही छोटी सी रोहू भी थी।अब वो रोहू थी या नही पता नही पर सब उसे कहते रोहू थे। हर मछली का अपना अलग स्टाइल था। काली मछली बहुत ही लेट लतीफ टाइप की थी और ज्यादातर पानी मे नीचे ही रहना पसंद करती थी। और ओरंज और ब्लैक बहुत ही तेज थी। जैसे ही खाना डालते थे ये दोनों फटाफट आ जाती थी खाने के लिए। और जब तक काली वाली आती थी तब तक खाना ख़त्म हो चुका होता था और हमे दोबारा उनके लिए खाना डालना पड़ता था।एक दिन अचानक सुबह देखा तो काली मछली पानी मे ऊपर आ गई थी बाद मे पता चला की वो मर गई थी।और दो दिन के अंदर ही दोनों काली वाली मछलियाँ मर गई थी।

जब हम लोग अंडमान से गोवा आने लगे थे तो हमने अपनी इन मछलियों को अपनी एक दोस्त को दे दिया था।और इस फोटो मे वो उसके घर के aquarium मे है। अपने घर के pond मे तो ये मछलियाँ ज्यादा बड़ी नही लगती थी पर दोस्त के घर के pond मे काफ़ी बड़ी लग रही थी।
अगली पोस्ट मे इन प्यारी मछलियों का हम विडियो लगायेंगे।
3 comments:
waah! badhiya post! aapney sahi khaa machliyan paalna asaan nahi..mai do baar laayi khareed kar aur dono baar ve swarg sidhar gayin..mun badaa dukhi hua..
बहुत अच्छा लगा. उनका गप्पे मारना मन को बहुत भाया. :)
ममताजी,आपके और हमारे शौक बहुत मिलते जुलते हैं.दिल्ली में रहते हुए पोंड तो हासिल नहीं किया जा सकता, हां अक्वेरिएम ज़रूर रखा है, एक जमीन वाला कछुआ भी हमारे साथ ही रहता है, उसके बारे में जल्दी ही एक पोस्ट लिखूंगी.मछलियों का गप मारना अच्छा लगा.:)
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